Monday, November 21, 2022

भारत दूसरे देश से कचरा क्यों खरीदता है - भारत कचरा को क्या करता है

 


नमस्कार दोस्तों आज भारत के सामने बहुत सी परेशानियां हैं जैसे कि ओवर पापुलेशन पलूशन प्लास्टिक वेस्ट प्लास्टिक के कचरे से समुंदर के भी कई जीवो की मौत हो जाती है। जिन कचरों से भारत को परेशानी होती है। उनका कचरों पर भारत ने band भी लगा दिया है। लेकिन अगर हम आपसे कहे कि भारत दूसरे देशों से कचरा खरीदता है। तो शायद आपको यकीन नहीं होगा। पर जी हां, आपने सही सुना आपको यह सुनने में अटपटा जरूर लग रहा होगा। 

भारत दूसरे देश से कचरा क्यों खरीदता है - भारत कचरा को क्या करता है

लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें। भारत 25 देशों से चार हजार तीन सौ करोड़ के लोग कचरा खरीदता है। भारत दूसरे देशों से इतना कचरा क्यों खरदिता है। कचरे से कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं। एक तो दूसरे देश का कचरा खरीदना ऊपर से उसके उन्हें पैसे देना। क्या कोई समझदारी है। यह बेवकूफी शायद आपको पता होगा कि भारत की कई कचरे जगहों पर कचरा का पहाड़ भी देखने को मिल जाता है। अब सवाल ये उठता है कि भारत इतने कचरे का करता क्या है। जानने के लिए बने रहिए। अंत तक हमारे साथ ही इस पोस्ट  में ।


भारत दूसरे देश से कचरा क्यों खरीदता है - भारत कचरा को क्या करता है


दोस्तो देश में एक नई तकनीक का आविष्कार हुआ है जिससे की कचरे के प्लास्टिक से सड़कें बनाई जा रही हैं। प्लास्टिक से बनी यह सड़कें भारत में 11 स्टेट्स को जोड़ती है, जिसकी कुल लंबाई 100000 किलोमीटर है। 1 किलोमीटर की सड़क बनाने के लिए 1 टन प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है। अब आप क्या सोच रहे हैं कि सड़कें बनाने के लिए ही भारत दूसरे देशों से कचरा इंपोर्ट करता है तो हम आपको बता दें कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है ।


क्योंकि भारत के दूसरे देशों से कचरा खरीदने के पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण है। हम आपको बता दें कि 1 टन पेपर को रिसाइकल करने से 17 पेड़ ढाई बैरल ऑयल 4000 किलोवाट बिजली, 4 किलोमीटर लैंडफिल और 31780 लीटर पानी की बचत होती है। भारत के सर्वे के अकॉर्डिंग ऐसा मानना है कि साल 2025 तक 10 steel और 1.4 टन आयरन जनरेट कर लेगा, जिससे भारत का 17 परसेंट एनर्जी सेव कर पाएगा। भारत के इस पार्क मंत्री ने अपने ट्वीट में प्लास्टिक कचरे से लोहा और इस्पात के निर्माण की बात की थी, जिसे लेकर जल्द ही भारत रोड मार्ग तैयार करने वाला है। 


अभी तक आपने जो कचरों देखते थे ।  भारत के अनशन के रूप में देखा इन्वेंशन हम आपको बताते हैं। कचरे का इस्तेमाल करने के अलग अलग तरीके । 


No.1 Satish Kumar 

प्रोफेसर सतीश कुमार हैदराबाद में रहने वाले  सतीश कुमार ने कचरे से पेट्रोल और डीजल का इंवेंशन किया है। जहा भारत में महंगाई को लेकर पैट्रोल डीजल के दाम को आसमान को छू रहे हैं । वही satish kumar ने 500 किलो ग्राम साइकिल नहीं होने वाले प्लास्टिक से तकरीबन 400 लीटर पेट्रोल बना दिया और यह पेट्रोल नेचुरल पेट्रोल से 30% सस्ता भी मिलेगा।  इस पूरे प्रोसेस को पैरालिसिस का नाम दिया गया है। 


No.2 Aaditya wanar 

राजस्थान के 17 साल के आदित्य वानर ने एक कंपनी बनाई जिसमें 1 दिन में 10000 टन प्लास्टिक कचरे को फैब्रिक में बदला जाता है। शायद आपको याद हो। साल 2015 में इंडियन क्रिकेट टीम ने एक सीरीज के दौरान प्लास्टिक वेस्ट से बनी टीशर्ट पहनी थी, जिनमें वह काफी कंफर्टेबल देख रहे थे। आदित्य की इस कंपनी से कचरा काफी हद तक कम हुआ है। साथ ही बेरोजगारों को रोजगार भी मिल रहा है इन इन्मेशन के चलते इंडिया दूसरे देशों से कचरा खरीदता है। 


पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत कचरा खरदीता हैं ? 

आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि भारत यूएसए यूरोप में टेली समेत दुनिया के कई बड़ी कंट्री से कचरा खरदीता है। इसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल है। पाकिस्तान और बांग्लादेश अपना कचरा हिंदुस्तान को देते हैं। दुनिया के बड़े-बड़े देश भारत को कचरा देते हैं। अपने एक कंप्यूटर को अपनी कंपनी में डिस्पोज करेंगे तो उसके लिए उन्हें ₹1494 खर्च करने होंगे, 


जिसका मतलब है कि इंडिया की बेस्ट मार्केट में उस कंप्यूटर को भेजा जाए तो यूएसए को उसका कॉस्ट आधा यानी कि ₹747 भी देना पड़ेगा। कुल मिलाकर बात यहां तो मुनाफे की है जहां भारत को प्लास्टिक कचरे को आयात करने में मुनाफा हो रहा है। वहीं दूसरे देशों को भी कचरे को सपोर्ट करने में प्रॉफिट हो रहा है ।


भारत एक दिन में कितना कचरा खरीदता है ? 

दोस्तो प्लास्टिक से होने वाली दिक्कत पर काबू पाया जा रहा है। लेकिन साथ ही प्लास्टिक के रीसायकल से नुकसान भी जरूर होंगे। नुकसान ओं को समझने से पहले इन आंकड़ों को समझ लीजिए। भारत के आंकड़ों के अनुसार भारत एक दिन में करीब 15342 टन प्लास्टिक वेस्ट कचरा निकलता है जिसमें से 6000 टन कचरा भी मुश्किल से इस्तेमाल नहीं हो पाता ।


जिसके बाद बाकी का कचरा इधर-उधर नदी के किनारे गंदगी को बढ़ावा देता है। वहीं भारत चार हजार तीन सौ करोड़ टन कचरा दूसरे देशों से खरीदा है। इसमें 11.4 मिलियन कचरा इस्तेमाल किया जाता है और बाकी के 31 टन कचरे को डैम कर दिया जाता है। लेकिन प्लास्टिक के कचरे को डंप करने के लिए भी तो जमीन की जरूरत होती है। 


कचरा से क्या नुकसान होते हैं ? 

यानी कि इंपोर्ट किए हुए कचरे में 22% कचरा रीसायकल होता है। बाकी का 78% कचरा बेकार हो जाता  है। आप परेशानी की बात यह है कि भारत अपने कचरे को तो संभाल नहीं पा रहा है बल्कि वह दुसरे देशों से कचरा इम्पोट कर रहा है जिसके चलते भारत को बहुत बडी परेशानी का सामना भी करना पड़ सकता है। 


55000 किलो प्लास्टिक कचरे का आयात बांग्लादेश और पाकिस्तान से ही होता है। दोस्तो इतने कचरे को भारत में जमा करने की वजह से भारत का एनवायरमेंट डेफिनेटली प्रदूषित हो रहा है । साथ ही इन कचरों में कई ऐसे मटेरियल होते हैं जो काफी हार्मफुल होते हैं। 


कचरा से भारत को क्या नुकसान हो सकता है ? 

दूसरा सबसे बड़ा नुकसान देखा जाए तो वह है डैम एरिया। इस कचरे को जमा करने के लिए काफी बड़ी जगह की जरूरत पड़ती है। आपको बता दें। इसके लिए 1240 फीट जमीन की जरूरत पड़ती है जिसके चलते साल 2030 तक भारत को कचरे को डंप करने के लिए ही एक पूरा का पूरा शहर बनाना पड़ जाएगा। प्लास्टिक की सड़क बनाने के लिए मुख्य दो चीजों की जरूरत होती है। 


डामर क्या है ? 

पहला रोड़ी और दूसरा डामर रोड़ी को तो आप अच्छी तरह से जानते ही होंगे, लेकिन आप में से कुछ लोग डामर को नहीं जानते होंगे। इसलिए आपको बता दें कि डामर धरती पर पाया जाने वाला एक चिपचिपा पदार्थ होता है, जिसे पिघलाकर रोड़ी के साथ अच्छे से मिक्स करके फैला दिया जाता है, जिसमें डामर और रोड़ी आपस में अच्छे से चिपक जाते हैं और 1 से 2 दिनों में सड़क सूखकर कंप्लीट हो जाती है ।


1 किलोमीटर सड़क बनाने में कितना डामर का जरूरत पड़ता है ? 

कचरे से बनाई गई सड़कों के बारे में तो ऐसे में करीबन 1 किलोमीटर तक की सड़क बनाने के लिए 10 टन डाबर का इस्तेमाल लगता है या यह भी कह सकते हैं कि 10 टन डामर की खपत होती है, लेकिन जब हम कच्चे माल प्लास्टिक के कचरे का इस्तेमाल करते हैं तो इसी डामर में प्लास्टिक को मिला देते हैं ।


जिसकी वजह से 10 टन डामर की खपत की जगह 9 टन डामर की खपत होती है जिसके चलते प्लास्टिक का सही इस्तेमाल होता है और साथ ही 1 टन डामर की बचत होती है। साल 2000 में भारत में प्लास्टिक के कचरे से सड़क बनाने की शुरुआत हुई थी, जिसकी खोज प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन नहीं की थी, 


जिन्हें भारत सरकार की तरफ से सम्मानित भी किया गया है। प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने के लिए सड़क की मिट्टी पर प्लास्टिक के टुकड़ों को बिछा दिया जाता है। इसके बाद से 170 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है जिसके बाद प्लास्टिक का कचरा पूरी तरह से बिखर जाता है और खिला हुआ प्लास्टिक का कचरा रोड़ी के साथ चिपक जाता है जिसके बाद तारकोल यानी कि डामर बिछा दिया जाता है ।


जिसके बाद कचरा मिट्टी डामर रोटी सब मिलाकर ऐसे ठोस पदार्थ का रुप ले लेते हैं, जिसके बाद यह मिक्सर पूरा हो जाता है और बड़ी-बड़ी मशीन के  साथ को सड़क बनाने के लिए फैला दिया जाता है। 


तो दोस्तो उम्मीद करता हूं कि ये जानकारी आपको अच्छा लगा होगा । तो क्या आपके मन में कोई सवाल है । या फिर आप वीडियो को देखना चाहते हैं। तो आप नीचे वीडियो को देख सकते है । जिससे आपको और भी समझ में आ जायेगा।  



तो आज के लिए इतना ही अब हम चलते है फिर मिलेंगे न्यू जानकारी के साथ तब तक हमारे ब्लाग के अंत तक बने रहने के लिए आप सभी लोगो को दिल से धन्यवाद ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


भारत के ठोस कचरा प्रबंधन के ऊपर विस्तार से चर्चा करें।

ठोस कचरा क्या है

शहरी ठोस कचरे के प्रबंधन के विभिन्न तरीकों का विस्तार से वर्णन करें?

No comments:
Write comment