Saturday, November 30, 2024

घर में गरीबी व दरिद्रता आने की कारण क्या - क्या होती है | गरीबी दूर करने का मंत्र

कहते हैं कि मनुष्य दी अपनी बर्बादी का कारण जान जाए तो वो अपने जीवन को सुखी बना सकता है। 5000 साल पहले भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताए गए इन्हीं कारणों की वजह से आज दुनिया भर के अधिकतर अपराधी या गुनाहगार या तो जेलों में बंद हैं या फिर भागते छुपते फिर रहे हैं। 

घर में गरीबी व दरिद्रता आने की

आज हम आपको एक कथा के माध्यम से भगवान कृष्ण द्वारा बताए गए उन तीन कारणों के बारे में बताइए जिनकी वजह से मनुष्य बर्बादी की राह पर निकल पड़ता है। 


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घर में गरीबी व दरिद्रता आने की कारण क्या क्या होती है | गरीबी दूर करने का मंत्र

श्री भागवत गीता में वर्णित इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक राजघराने में एक लड़के का जन्म हुआ। उस लड़के को बहुत ही कम उम्र में राजशाही सुख-सुविधाओं से दूर शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल भेज दिया गया। जिस गुरुकुल में बालक शिक्षा ग्रहण कर रहा था। 


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वहां का वह सबसे होनहार विद्यार्थी था। गुरुकुल में उस बालक ने सारे हिंदू वेद पुराण ओर शास्त्रों का अध्ययन किया परंतु दुर्भाग्य से उस बालक की अभी गुरुकुल की शिक्षा समाप्त भी नहीं हुई थी कि उसके माता-पिता और सभी भाई-बहन एक प्राकृतिक आपदा में मारे गए माता पिता और अपने भाई बहन को खोने के बाद वह बालक सांसारिक मोह माया से विरक्त हो गया और गुरुकुल से शिक्षा पूर्ण करने के बाद उसने प्रण लिया कि वह अपना संपूर्ण जीवन लोगों की भलाई में व्यतीत करेगा। 


उसके बाद वह बालक सन्यासी बन गया और वह सांसारिक वस्तुओं से दूर हिमालय के जंगलों में चला गया। फिर उसने वहां लंबे समय तक तपस्या की और तपस्या पूर्ण होने के बाद उस सन्यासी ने लोगों को शिक्षा देना आरंभ किया। समय के साथ-साथ उस सन्यासी की चर्चा चारों ओर होने लगी और दूर-दूर से लोग उस से शिक्षा प्राप्त करने और अपनी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए आने लगे। 


सन्यासी सभी लोगों की समस्या बड़ी ही आसानी से सुलझा देता। जिस वजह से वे कुछ ही समय में पूरे राज्य में मशहूर हो गया दुर्भाग्य से उस समय उस राज्य का एक राजा एक क्रूर व्यक्ति हुआ करता था। उसे जब इस सन्यासी के बारे में पता चला तो उसने सन्यासी से मिलने का निश्चय किया ।


और अगली सुबह में राज महल से निकाल उस सन्यासी की कुटिया जा पहुंचा। वहां पहुंच कर उसने उस सन्यासी से भेंट की जिसके बाद एक चमत्कार हुआ। वह राजा पहली मुलाकात में सन्यासी के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी समय से अच्छाई की राह पर चलने की ठान ली और मन ही मन सोचने लगा कि इतनी छोटी सी मुलाकात में यह सन्यासी मुझे इतना बदल सकता है ।


तो अगर यह हमेशा मेरे साथ रहने लगे तो मेरी तो जिंदगी ही बदल जाएगी। इसके बाद राजा सन्यासी से अपने साथ राजमहल चलने के लिए आग्रह करने लगा। राजा के आग्रह को सन्यासी ठुकरा ना सके और वह राजमहल चलने को तैयार हो गए। 


राजा सन्यासी को साथ लेकर राजमहल की ओर चल दिए। राजमहल पहुंचने पर सन्यासी का खूब आदर सत्कार किया गया और उसके बाद राजा ने सन्यासी को शाही कमरे में भोजन करवाया। 


भोजन के पहचात सन्यासी ने राजा को धन्यवाद दिया और राजा से जाने की आज्ञा मांगी। जिस पर राजा ने सन्यासी से कहा । आप हमारे बगीचे में जब तक चाहे रह सकते हैं। आपको यह किसी भी प्रकार की कोई असुविधा नहीं होगी। 


यह सुनकर सन्यासी ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उसके बाद राजा ने अपने सेवकों से कहा कि बगीचे में सन्यासी महाराज के रहने खाने और वस्त्र आदि का प्रबंध किया जाए। राजा की आज्ञा अनुसार सेवकों ने बगीचे में एक सुंदर सी कोठी का निर्माण कर दिया। 


उसके बाद वह सन्यासी कई सालों तक उस कुटिया में रहे और इस दौरान राजा ने भी उनकी खूब सेवा की परंतु कई सालों बाद एक दिन अचानक राजा और रानी को आवश्यक कार्य से दूसरे राज्य जाना पड़ा । लेकिन उन्होंने इस सेवादार को सन्यासी की सेवा के लिए नियुक्त कर दिया। परंतु वह सेवादार राजा के जाने के बाद बीमार पड़ गया और अपने घर चला गया और कभी लौट कर नहीं आया। ऐसे में सन्यासी को कोई भोजन देने वाला भी नहीं था। 


उधर कुछ दिनों बाद राजा जब अपने पड़ोस के राज्य से वापस आए तो सन्यासी ने क्रोध में आकर उस राजा को खूब डांटा और राजा से कहा। हे राजन जो जिम्मेदारी तो पूरी नहीं कर सकते हो  । वो उठाते ही क्यों हो तब राजा ने सन्यासी से क्षमा मांगते हुए कहा । 


 हे भगवान यदि मुझसे कोई भूल हो गई हो तो मैं उसके लिए आपसे क्षमा मांगता हूं। मुझे क्षमा कर दीजिए। कुछ देर बाद मामला शांत हो गया। रानी भी ये सब चुपके से देखती परन्तु संत रहे । उसके बाद राजा ने उस सन्यासी को कोई भी शिकायत का मौका नहीं दिया और उसकी खूब सेवा की। 


परंतु कुछ दिनों बाद राजा को एक बार फिर आवश्यक कार्य से राज्य से बाहर जाना पड़ गया। लेकिन इस बार राजा ने राज्य से बाहर जाने से पहले रानी को निर्देश दिया कि जब तक मैं नहीं आता । आप स्वयं सन्यासी की सारी जरूरतों का पूरा ध्यान रखेंगे। उसके बाद रानी हर रोज भोजन पकवा कर सन्यासी को भेज देती थी । 


लेकिन एक दिन रानी नहाने के लिए चली गई और सन्यासी को भोजन देना भूल गई। सन्यासी ने काफी देर तक भोजन के आने का इंतजार किया। पर जब भोजन नहीं आया। तो सन्यासी सोच में पड़ गया। उसके बाद सन्यासी ने  सोचा कि वह खुद महल में जाकर देखें और वह महल पहुंच गया। 


वहां जाकर उसकी नजर रानी पर पड़ी और वह रानी के रूप को देखकर चकित रह गया । रानी की सुंदरता सन्यासी के मन में घर कर गई। सन्यासी रानी के रूप की सुंदरता को भुला ना सका और वह खाना पीना छोड़ कर अपनी कुटिया में पढ़ा रहा। उसने कई दिनों तक कुछ भी नहीं खाया। 


जिस वजह से बहुत कमजोर हो गया। फिर कुछ समय बाद राजा वापस लौट आया और जब उसे सन्यासी के हाल का पता लगा । वह सीधे सन्यासी के पास पहुंच गए और उन्होंने सन्यासी से कहा । आप बहुत कमजोर हो गए हैं और किस गहरी सोच में डूबे हुए हैं। क्या मुझसे कोई भूल हो गई है ।


तब सन्यासी ने राजा को बताया कि हे राजन । मैं आपकी रानी के अद्भुत सुंदरता की फेर में पड़ गया हूं और रानी के बिना जिंदा नहीं रह सकता। यह सुनकर राजा ने सन्यासी से कहा ।  आप मेरे साथ महल चलिए । मैं आपको रानी दे दूंगा। फिर राजा सन्यासी को लेकर महल चले गये । 


भाग्य से उस दिन रानी ने अपने सबसे सुंदर वस्त्र और गहने पहने हुए थे। राजा रानी के पास पहुंचे और कहा । आपको सन्यासी की मदद करनी चाहिए। वह बहुत कमजोर पड़ गए हैं और मैं नहीं चाहता कि किसी ज्ञानी पुरुष की हत्या का कलंक मेरे सर पर लगे। 


उसके बाद राजा ने रानी से पूछा कि क्या आप यह पाप अपने सर लेना चाहते हैं तब रानी ने राजा से पूछा। सन्यासी के इस दुख का कारण क्या है तब राजा ने कहा, सन्यासी आप की अद्भुत सुंदरता के दीवाने हो गए हैं। यह सुनकर रानी ने कहा, राजन आप चिंता ना करें। मुझे पता है कि मुझे क्या करना है ।


जिससे ना तो आपके माथे पर एक सन्यासी की हत्या का पाप लगेगा और ना ही मेरी पतिव्रता धर्म नाश होगी और फिर राजा ने रानी को सन्यासी को सौंप दिया। उसके बाद सन्यासी रानी को लेकर कुटिया पर पहुंचा तो रानी ने सन्यासी से कहा।  हमें रहने के लिए घर चाहिए। 


यह सोच सन्यासी तुरंत राजा के पास गया और कहा हे राजन हमें रहने के लिए घर चाहिए। राजा ने उनके लिए घर का प्रबंध किया। सन्यासी जब रानी को लेकर जब घर पहुंचा तो रानी ने कहा, घर तो बहुत गंदा है और उसकी हालत तो बहुत खराब है। 


सन्यासी फिर राजा के पास पहुंचा और कहा राजन आपने जो घर मुझे दिया है उस घर की हालत बहुत खराब है। तब राजा ने उस घर की हालत ठीक करवा दी। फिर रानी नहा धोकर बिस्तर पर आ गई और सन्यासी भी बिस्तर पर आ गया। उसके बाद रानी ने सन्यासी से कहा कि आपको पता है कि आप कौन थे ।


और आप क्या बन गए। आप एक महान सन्यासी थे जिसके लिए स्वयं राजा भी सारी जरूरत की वस्तुएं उपलब्ध कराते थे और आज आप वासना के कारण मेरे गुलाम हो गए हैं। यह सुनकर सन्यासी को महसूस हुआ कि वह तो एक सन्यासी है जो अपनी सारी सुख सुविधाओं को छोड़कर शांति की तलाश में जंगलों में चले गए थे।


सन्यासी जोर-जोर से चिल्लाने लगा और रानी से कहा क्षमा कीजिए। मैं अभी आपको राजा को सौंप के आता हूं। तब रानी ने प्रश्न किया। महाराज जब उस दिन आप को भोजन नहीं मिला तो आप बहुत क्रोधित हो गए थे। मैंने आपका यह रूप पहली बार देखा था तभी से मैंने आपके व्यवहार में परिवर्तन महसूस किया तब सन्यासी में रानी को समझाया है ।


कि जब मैं जंगल में था तो मुझे समय पर भोजन भी नहीं मिला करता था। पर महल में आने के बाद मुझे सुविधाएं मिली और मैं इसके मुंह में फंस गया। मुझे इसके प्रति लगाओ उत्पन्न हो गया और फिर इनको पाने का लालच हो गया और जब मुझे ये नही  तो क्रोध उत्पन्न हुआ। 


सन्यासी ने बताया कि सच तो यह है कि अगर इच्छा पूरी ना हो तो क्रोध उत्पन्न होता है और अगर पूरी हो जाए तो लालच पड़ जाता है और फिर संन्यासी ने बताया कि यही इच्छा की पूर्ति मुझे वासना के द्वार तक ले आई और मैं आपके प्रति आकर्षित हो गया। इसके बाद सन्यासी को समझ आ गया कि उनको जंगलों में वापस लौट जाना चाहिए और उन्होंने ऐसा ही किया। 


श्री मद्भागवत गीता में कितने श्रोलोक बताये है ? 

दर्शकों भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने नरक के तीन द्वार बताए हैं और यह तीन द्वार है। काम क्रोध और लोभ तो दर्शकों आपको भगवान श्री कृष्ण की सुनाइए। कथा कैसी लगी नीचे कमेंट कर अवश्य बताएं ।  


तो दोस्तो आज के लिए इतना ही अब हम चलते हैं । फिर मिलंगे नई जानकारी के साथ तब तक हमारे blogg के अंत तक बने रहने के लिए आप सभी लोगो को दिल से धन्यवाद ,,,,,,,,,


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