हिंदू धर्म की शादियों में तमाम रस्म और रिवाज निभाने के बाद ही विवाह को पूर्ण माना जाता है। तब जाकर कन्या और वर पति पत्नी बन पाते है । विवाह के इन रस मो में सबसे महत्वपूर्ण होता है कन्यादान!
कन्यादान कविता के आधार पर बताइए कि मां के दुख को प्रामाणिक क्यों कहा गया है
कन्यादान का अर्थ होता है कन्या का दान अर्थात पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सोपता है। इसके बाद से कन्या की सारी जिम्मेदारियां वर को निभानी होती है। यह एक भावुक संस्कार है जिसमें एक बेटी अपने रूप में अपने पिता के त्याग को महसूस करती है। आइए जानते हैं कन्यादान का महत्व और कैसे निभाई जाती हैं? स्वागत है दोस्तों आपका हमारे ब्लॉग में ।
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क कन्यादान कविता के आधार पर बताइए कि मां के दुख को प्रामाणिक क्यों कहा गया है
भगवान विष्णु का स्वरूप वेदों और पुराणों के अनुसार विवाह में वर को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। विष्णु रूपी वर कन्या के पिता की हर बात मान कर उन्हें यह आश्वासन देता है कि वह उनकी पुत्री को खुश रखे और उस पर कभी आंच नहीं आने देगा।
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कन्यादान का महत्व ?
शास्त्रों में बताया गया है कि जब कन्या के पिता शास्त्रों में बताए गए विधि विधान के अनुसार कन्यादान की रस्म निभाते हैं तो कन्या के माता पिता और परिवार को भी सौभाग्य की प्राप्ति होती है। दक्षिण भारत में ऐसा कन्यादान कन्यादान की रस्म देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से निभाई जाती है। दक्षिण भारत में कन्या अपने पिता की हथेली पर अपना हाथ रखती है और वर अपने ससुर की हथेली के नीचे अपना हाथ रखता है ।
फीर इसके ऊपर जल डाला जाता है। पुत्री की हथेली से होता हुआ जल पिता की हथेली पर जाता है और इसके बाद वर के हथेली पर जाता है । उत्तर भारत की परंपरा उत्तर भारत के कई स्थानों पर वधू की हथेली को एक कलश के ऊपर रखा जाता है। फिर वर वधु की हथेली पर अपना हाथ रखता है। फिर उस पर पुष्प गंगाजल और पान के पत्ते रस के मंत्रोच्चार किए जाते हैं। इसके बाद पवित्र वस्तु से वर वधु का गठबंधन किया जाता है और इसके बाद सात फेरों की रस्म निभाई जाती है।
कन्यादान से मोक्ष की प्राप्ति ?
कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। ऐसा माना गया है कि जिन माता पिता को कन्यादान का सौभाग्य प्राप्त होता है, उनके लिए इससे बड़ा पुण्य कुछ नहीं है। यह दान उनके लिए मोक्ष की प्राप्ति मनु उपरांत स्वर्ग का रास्ता भी खोल देता है। ऐ से शुरू हुई कन्यादान की परंपरा पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था।
27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्री कहा गया है जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था। इन्होंने ही सबसे पहले अपनी कन्याओं को चंद्रमा को सौंपा था ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो। इन्हीं की पुत्री देवी सती भी थी जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था ।
तो दर्शकों आज का सवाल आपके लिए यह है कि क्या आप बता सकते हैं कि विदाई के वक्त दुल्हन चावल बैठने की रेशम क्यों करती है । तो आज के लिए इतना ही फीर मिलेंगे न्यू जानकारी के साथ तब तक हमारे ब्लॉग के अंत तक बने रहने के लिए आप सभी लोगो को दिल से धन्यवाद ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना मैं क्या संदेश निहित है?
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कन्यादान कविता के माध्यम से कवि ने पुरुष प्रधान की किन बातों को उजागर किया
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