Thursday, October 12, 2023

बलि की सार्थकता क्या है? क्या हमें पशुओं की बलि देकर देवों को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए?

 

भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही किसी भी जीव का वध अपने स्वार्थ के लिए करना अपराध माना गया है। सनातन धर्म में सदैव ही यह शिक्षा दी गई है कि मानव से लेकर किसी छोटे से छोटे जीव की हत्या करना भी पाप है, जबकि इसी देश और इसी धर्म में बलि की प्रथा भी देखी गई है। यह दोनों ही बातें एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत है  । विश्व के अनेक देशों में बलि देने की प्रथा रही है। 

बलि की सार्थकता क्या है? क्या हमें पशुओं की बलि देकर देवों को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए?

हमारे देश में मां काली को बलि दी जाती है। आज भी काली के अनेक मंदिरों में देवी को मांस का भोग लगाया जाता है। बंगाल की काली घाट आसाम की कामाख्या जैसे मंदिरों में मुख्य मंदिर में ही आप मछली या बकरे का भोग लगा हुआ देख सकते हैं। वास्तव में बलि देने का क्या अर्थ है क्या मां काली किसी के प्राणों की इच्छा रखती है। मां काली का रूप भयंकर है। 


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उन्हें क्रोध और संघार की देवी माना जाता है। उन्होंने लोक कल्याण हेतु रक्तबीज चंड, मुंड, शुंभ, निशुंभ जैसे राक्षसों का संहार किया, इसलिए उनके हाथ में रक्त एक कटोरा भी देखा जाता है तो क्या दुष्टों का वध करने वाली महाकाली अपने भक्तों से भी बली की आशा करती हैं। क्या काली देवी बली से प्रसन्न होती है? 

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बलि की सार्थकता क्या है? क्या हमें पशुओं की बलि देकर देवों को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए?

आज हम चर्चा करेंगे कि काली देवी को बलि देकर उन्हें मास क्यों अर्पित किया जाता है। देखा जाए तो अधिकांश लोग स्वार्थ के लिए भगवान या देवताओं को पूजते हैं। उनकी मनोकामना पूर्ण हो। इसके लिए वह किसी भी सीमा तक जाने के लिए सहमत हो जाते हैं। बलि देने का अर्थ है। उर्जा को मुक्त करना और उस ऊर्जा को किसी और कार्य में प्रयोग करना, नारियल, नींबू आदि अर्पित करना भी बलि का ही रूप है, 


परंतु उसने किसी को हानि नहीं पहुंचती। मां काली किसी की हत्या से प्रसन्न होकर इच्छापूर्ति नहीं करती। यह केवल मानसिकता पर निर्भर करता है जो लोग आज भी बलि देने में विश्वास रखते हैं। उनकी मानसिकता ही है कि बलि देने से उनका जीवन समृद्ध और सुखी होगा। परंतु यदि गहनता से देखा जाए तो यह एक मानसिक रोग है। ऐसे कृत्य से कोई देवी देवता प्रसन्न नहीं हो सकते। 


देवी मनुष्य के बली भी लेता है? 

यह क्रूरता का एक निम्न स्तर का उदाहरण है जो लोग बिना विचार किए केवल अपने उद्देश्य को सिद्ध करना चाहते हैं। वह मनुष्य की बलि देने की सीमा तक पहुंच जाते हैं। बलि के लिए सदैव ऐसे व्यक्ति या पशु को चुना जाता है जो जीवंत और ऊर्जावान हो। अधिकारियों के प्राणी की कभी बलि नहीं दी जाती। यहां तक कि लोग अपने बच्चों की भी बलि दे देते हैं। 


यहां पर लोगों को विचार करने की आवश्यकता है कि जिसकी भी बलि वह दे रहे हैं, उससे देवी या देवता का कोई संबंध नहीं है। उदाहरण दिया यदि बकरे की बलि दी जाती है तो उसे अंततः लोग ही ग्रहण करते हैं ना कि वह देवता जिसके नाम पर बलि दी गई है। यदि बलि को अध्यात्म से जोड़ा जाता है तो यह बिल्कुल आधारहीन विचार है। अध्यात्म का इन सब से कोई लेना देना नहीं है। वास्तव में आध्यात्मिक भौतिक जगत से बिल्कुल परी है। 


मनुष्य को यह जन्म इसलिए मिलता है कि वह अध्यात्म का अभ्यास करके सत्य को खोजें और मनुष्य जन्म को सार्थक बनाएं ना कि बलि जैसी कृतियों से अपने स्वार्थ को सिद्ध करें और स्वयं को पाप के कुएं में धकेले।   मां काली या कोई भी देवी देवता किसी भी प्रकार की बलि या मास कि इच्छा नहीं रखते। मनुष्य को इस भ्रम से बाहर निकल कर एक बड़े दृष्टिकोण से जीवन को देखने की आवश्यकता है ।। 


तो दोस्तो क्या आपके भी गांव में या आपके गांव के अगल बगल में मनुष्य या बकरे के बली दी जाती है । हमे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं । और इसे ही जानकारी के लिए आप हमारे ब्लॉग को subscribe जरूर करें । धन्यवाद । 


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