मोबाइल रेडिएशन कैसे आपके दिमाग पर असर करती है। देखिए कैसे मोबाइल रेडिएशन आपकी जान ले रहा है। महामारी से भी ज्यादा लोग इस रेडिशन के कारण मारे जा रहे हैं। डेंगू मलेरिया हो या फिर हाल ही में चल रही महामारी जिसका नाम सुनकर लोग डर से कांप उठते हैं।
पर दोस्तों यह बीमारी तो केवल कहने के लिए खतरनाक है। असली खतरा तो आपने इस वक्त आपके हाथों में ले रखा है क्योंकि मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडिएशन जो हमे दिखती भी नहीं है। वो हमारा ना सिर्फ शरीर पर बल के दिमाग में इतना गहरा असर छोड़ती है कि आप सोच भी नहीं सकते।
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और यही वजह कि पहले के मुकाबले लोग आज मानसिक रोगों से ज्यादा ग्रसित हो रहे हैं, लेकिन इसके पीछे का पूरा खेल क्या है। इसे जानने के लिए पोस्ट में हमारे साथ इसी तरह बने रहिए क्योंकि क्या पता पोस्ट को पढ़ने के बाद मोबाइल के प्रति आपका नजरिया बदल जाएं ।
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मोबाईल फोन के ज्यादा उपयोग से होने वाले दो शारीरिक पीड़ाओं के नाम लिखिए।
असल में दोस्तों मोबाइल से निकलने वाली रेडिएशन हमारे दिमाग की सेल से कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं जिसके कारण दिमाग के सेल्स डिस्टर्ब होने लगता है। इसलिए जब हम ज्यादा समय तक मोबाइल चलाते हैं तो हमारा सिर दर्द होना शुरू हो जाता है और अगर यही आदत लगातार चलती रही तो याददाश्त कमजोर हो ना आंखों पर गलत असर पड़ने से लेकर ब्रेन ट्यूमर और कैंसर जैसी बड़ी बीमारियां आपको अपनी चपेट में कब ले लेंगे। आपको पता भी नहीं चलेगा।
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दरअसल मोबाइल रेडिएशन दो तरीके से हमारी सेहत पर प्रभाव डालते हैं। पहला तरीका है। हिट एफेक्ट अगर आप 1 घंटे तक लगातार अपने कान पर फोन लगा कर बात करते हैं तो आपको इतनी गर्मी मिलती है। जितनी 1 मिनट में एक माइक्रो, उत्पन्न करता है। जी हां, यह बात भी सच में समाने आई है।
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कान में मोबाइल लगाकर बात करने से कोण से बीमारी होती है?
अब सोच लीजिए अपने कान पर मोबाइल फोन लगाकर सिर्फ बात करना आपके लिए किस हद तक जानलेवा साबित हो सकता है और दूसरा तरीका है। बायोलॉजी इफेक्ट का । आपको यह बात तो पता ही होगी। हमारी कोशिकाएं एक दूसरे से संपर्क बना कर रखती है।
शरीर का हर हिस्सा इन्हीं कोशिकाओं और सेल्स वगैरह की वजह से एक दूसरे से कनेक्टेड रहता है। लेकिन मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडिशन कोशिकाओं के बीच का जो कनेक्शन है उस में दिक्कत पैदा करती है और इसी वजह से लोग आए दिन अलग-अलग किस्म की बीमारियों का शिकार बन जाते हैं ।
रेडिशियन क्या होता है?
तो आखिर क्या है यह मोबाइल रेडिएशन और क्यों इसने सभी की नाक में दम कर के रखा है। असल में दोस्तों हम जितने भी चीज इस्तेमाल करते हैं, उन सभी से अलग अलग प्रकार की रेडिएशन निकलती है। रेडिएशन सब्द पर जाएं तो यह हमारे वातावरण में फेली ऐसी ऊर्जा है । जो तरंगों के रूप में चलती है। जिन्हे हम रेडियो वेव्स भी कहते हैं।
आपको बताते चलें कि यह तरंगे प्राकृतिक भी होती हैं जैसे कि सूर्य की रोशनी से निकलने वाली तरंगें जो पूरी तरह से प्राकृतिक है और यह भी इंसानों को नुकसान पहुंचा सकती है। वह तो हमारे वायुमंडल में ओजोन प्लेयर है जिसकी वजह से हानिकारक तरंगे हम तक डायरेक्ट नहीं पहुंच पाती।
वरना सूरज की रोशनी के सामने खड़ा होना भी मुश्किल हो जाता। अब इंसानों का तो आप जानते ही हैं। हमें हर चीज को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना बखूबी आता है। इसलिए हमने इन तरंगों का इस्तेमाल अपने हिसाब से करना शुरु कर दिया। इसकी वजह से आज हम टेलीविजन के रिमोट से लेकर मोबाइल फोन और बॉडी के हर एक पुर्जे का हाल बताने वाले एक्स-रे तक में हम इन वीर का इस्तेमाल करते हैं।
क्या हर चीज का रेडिशियन होता है?
शायद आपको विश्वास ना हो पर एक्स-रे से निकलने वाली तरंगें सबसे ज्यादा हानिकारक होती है क्योंकि यह तरंगे आपकी हड्डियों को छोड़कर आपके पूरे शरीर के आर-पार निकल जाती है और अगर हम ज्यादा समय तक इनके संपर्क में रहते हैं तो हमारे शरीर की कोशिकाओं पर काफी बुरा प्रभाव डाल सकती है और अब वह जितने भी इलेक्ट्रिकल प्रोडक्ट्स है जैसे कि मोबाइल फोन वगैरा उनसे भी काफी मात्रा में तरेंगे निकलने लगी है।
हमारे आसपास मौजूद इन हानिकारक रेडिएशन की वजह से ही बॉडी में जाने वाली रेडिएशन को नापने के लिए स्पेसिफिक ऑब्जरवेशन रेट का इस्तेमाल किया जाता है जिसे आम भाषा में ऐसे यार कहते हैं और यहीं वा अस्तर होता है। जो भी बताता है। हमारी बॉडी में कितनी मात्रा में रेडीसन जा सकता है
और देश की सरकार अपनी आंखें स्पेसिफिक अब्जॉर्प्शन रेट तय करती इंटेंसिटी तक की रेडिशन निकालनी चाहिए, उससे अधिक नहीं निकलनी चाहिए । क्योंकि अगर इससे ज्यादा रेडिशन वायुमंडल में रिलीज हो रही है तो ऐसे आर का स्तर ज्यादा बढ़ने की वजह से इंसान को बहुत ही भयंकर खतरे का सामना करना पड़ सकता है और भारत में भी कुछ ऐसा ही है ।
जहा रेडिसियन रेट का स्तर 1.6 वाट सिक्स वाट प्रति किलोग्राम से ज्यादा नहीं होना चाहिए। मानक तय किए गए हैं, लेकिन हमारे देश में आज तक कोई चीज कानून के हिसाब से हुई है।
मोबाइल का रेडेशियन बढ़ता कैसे है ?
जो अब होगी तभी तो जितने भी टेलीकॉम कंपनी है वह अपने नेटवर्क को बेहतर बनाने के लिए जगह-जगह पर टावर लगा रही है जिसके कारण रेडिएशन का जो सर है वह बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि दोस्तों वैज्ञानिक भी पहले ही कह चुके हैं कि अगर रेडिएशन की मात्रा सही है तो आपको कोई भी नुकसान नहीं होगा ।
लेकिन अगर रेडिएशन कुछ ज्यादा ही मात्रा में आप पर पहुंच रही है तो इसका गलत प्रभाव होना शुरू हो जाएगा। आइए बात करते रेडिशन कितने प्रकार की होती है?
रेडिशन कितने प्रकार के होते है।
रेडिएशन कितने प्रकार की होती है। दोस्तो रेडिएशन 2 प्रकार के होते हैं। पहली तो non-ionizing रेडीशन और दूसरी होती आयनाइजिंग रेडिएशन दोस्तों जो Non आयनाइजिंग रेडिएशन होती है, उसमें बहुत कम लेवल की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स निकलती है,
जिनकी फ्रीक्वेंसी 1000 से 3000 मेगावाट होती है। माइक्रोवेव ओवन एयर कंडीशन, वायरलेस, कंप्यूटर रेडियो कालर फोन और दूसरे वाले इस डिवाइस इसी में आते हैं। पर जब बात दूसरे एडिशन की होती है,
इसमें बहुत ही ज्यादा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स निकलती है जिसमें आपकी एक्स-रे मशीन का वारिस अल्ट्रावॉयलेट रेज होती है जो हमारे लिए बेहद खतरनाक होती है । वैसे दोस्तों एक सवाल यह भी आता है कि रेडिएशन से किस उम्र के लोगों को खास नुकसान होता है ।
रेडिएशन से किस उम्र के लोगो को नुकसान होता है!
तो दोस्तों इसके लिए हम आपको बता दें कि हर उम्र के लोगों के लिए खतरनाक है। खासतौर पर बच्चे महिलाएं, बुजुर्ग और मरीजों के लिए तो यह ज्यादा ही हानिकारक है तो इस बात की कोशिश कीजिए कि उनके पास कम से कम ऐसी चीजें रखे जिंसी रेडिशन निकलती है और बच्चों को मोबाइल न देने का कारण सिर्फ उनकी आंखों को बचाना नहीं है बल्कि फोन से निकलने वाले रेडिएशन से उनका बचाव करना भी है ।
क्योंकि अगर आपको ऐसा लगता है कि आप अपने बच्चों को बाहर जाने से रोकने के लिए मोबाइल फोन पकड़ा देंगे ताकि वह संक्रमण से बचे रहे। भले ही आपके बच्चे महामारी से बच जाएंगे। लेकिन मोबाइल फोन की वजह से उनकी आगे आने वाली पूरी जिंदगी खराब हो सकती है। जी हां, लॉकडाउन के समय में बच्चों को मोबाइल फोन की जितनी आदत हुई है उतना आज तक बच्चों ने कभी मोबाइल फोन इस्तेमाल ही नहीं किया ।
बच्चा को मोबाइल देने से क्या खतरा होता है?
जिसका उन पर काफी गलत प्रभाव पड़ रहा है ना सिर्फ बच्चे बाहर के दुनिया में अपना संपर्क तोड़ते जा रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया और गेम खेलकर अपने दिमाग को मोबाइल फोन की गिरफ्त में कर रहे हैं। यह सारी चीजें अभी तो उन्हें बहुत अच्छी लग रही है। लेकिन बाद में उनकी जान का जंजाल बन जायेगी । कई सारे वैज्ञानिकों ने मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन पर अपने रिसर्च की है।
जिनका यह साफ कहना है कि मोबाइल फोन को कान पर लगाकर लगातार बिल्कुल भी बात नहीं करनी चाहिए और अगर आपको अभी भी हमारी बातों पर शक हो रहा है तो जरा आंकड़ों पर नजर डाल लो क्योंकि 2010 में डब्ल्यूएचओ आनी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने अपने एक रिसर्च में खुलासा किया था कि मोबाइल रेडिएशन से कैंसर का खतरा बहुत ही ज्यादा बढ़ जाता है ।
मोबाइल रेडिशन से केंशर होता है?
क्योंकि हमारे शरीर में कैंसर के जितने भी सेल्स पहले से मौजूद होते हैं, वह मोबाइल के रेडिएशन की वजह से और ज्यादा मजबूत हो जाते हैं। हंगरी में कुछ वैज्ञानिकों ने रिसर्च किया और उसे रिसर्च में पाया कि जिन लोगों ने ज्यादा समय तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया है,
मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने से स्पर्म कम होता है?
उनके स्पर्म की संख्या कम हो गई। अब ऐसा होना किस बात की ओर इशारा करता है यह तो आप समझ गए होंगे इसलिए अगर आपको नपुंसकता के शिकार नहीं होना तो भैया जरा मोबाइल फोन साइड रख दिया करो और किताबें वगैरह पढ़ लिया करो क्योंकि एक बार इस बारे में कब्जा कर लिया तो जिंदगी भर का दाग लग जाएगा और इन सबसे भी अगर आपका पेट नहीं भरता तो दोस्तों भारत के केरल में भी रिसर्च की गई ।
जिसमें उन्होंने मधुमक्खियों का इस्तेमाल किया जिसमें यह पाया गया कि मोबाइल टावर से निकलने वाली रेडिएशन से मधुमक्खियों की संख्या 60 फ़ीसदी तक कम हो गई है। जिसे ये चीज साबित होती है कि यह रेडीशन ना केवल हम इंसानों के लिए बल्कि जानवरों के लिए भी घातक है। अब सवाल यह आता है कि मोबाइल रेडिएशन से हम कैसे उसको बचा सकते हैं ।
मोबाइल रेडिएशन से कैसे बचें?
क्योंकि मोबाइल से चिपके रहने की आदत तो किसी की जाएगी नहीं। ऊपर से जब से ऑनलाइन का जमाना आया है तब से हालात और ज्यादा बिगड़ गए। इसलिए जरूरत है सावधानी बरतने के जिसके लिए आपको सबसे पहले कम मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना होगा।
शुरुआत में आपको थोड़ा अटपटा जरूर लगेगा। लेकिन अगर आप आदत बना लेंगे तो चीजें मुश्किल नहीं होंगी क्योंकि आदत आप किसी और के लिए नहीं बल्कि अपनी बेहतरी के लिए तो बनाओगे। अगर दिन में 2 - 4 घंटा मोबाइल फोन कम इस्तेमाल करने से आपकी जिंदगी के 15 से 20 साल बढ़ सकते हैं तो हमें नहीं लगता है कि कहीं से भी घाटे का सौदा है ।
आप खुद ही गौर करिएगा। जब मोबाइल फोन वगैरा नहीं हुआ करते थे तो लोग ना सिर्फ ज्यादा लंबे समय तक जीवित रहते थे। बल्कि बीमारियां भी अपनी गिरफ्त में नहीं लेती थी। अब हालात बदल गए हैं।
चीजे पूरी तरह से हमारे हाथों से निकल ना जाए उस से पहले हमें समझना होगा, वरना बहुत देर हो जाएगी। बाकी आप इस पर क्या कहेंगे कमेंट में जरूर बताइए ऐसी ही पोस्ट को पढ़ने के लिए आप हमारे ब्लॉग को subscribe जरूर करें । धन्यवाद ,,,,,,,,
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